तो फिर खोलेगा कौन?
सच हम नहीं बोलेंगे
तो फिर बोलेगा कौन?
कलम मेरी बिकाऊ हो जाए
ऐसा मेरा ज़मीर नहीं।
कोई पैसों से खरीद ले हमें
ऐसा कोई अमीर नहीं।
काला चिट्ठा नहीं खोलेंगे
तो फिर खोलेगा कौन?
सच हम नहीं बोलेंगे
तो फिर बोलेगा कौन?
गिरगिट की तरह रंग बदलना
ऐसा मेरा धर्म नही।
झूठ को भी सच कह देना
ऐसा मेरा कर्म नहीं।
जुल्म पर जुबा नहीं खोलेंगे
तो फिर खोलेगा कौन?
सच हम नहीं बोलेंगे
तो फिर बोलेगा कौन?
ईमान धर्म पर आंच आ जाए
रिश्वत पर नहीं डोलूंगा।
कोई गर्दन पर तलवार रख दे
तबभी मैं सच ही बोलूंगा।
न्याय के तराजू नहीं तोलेंगे
तो फिर तोलेगा कौन?
सच हम नहीं बोलेंगे
तो फिर बोलेगा कौन?
कभी कुरु क्षेत्र में गीता का
उपदेश सुनना होता है।
कभी बांसुरी वाले हाथों में भी
चक्र सुदर्शन होता है।
कड़वाहट में मिठास नहीं घोलेंगे
तो फिर घोलेगा कौन?
सच हम नहीं बोलेंगे
तो फिर बोलेगा कौन?
कवि रंजन शर्मा
संग्रामपुर मुंगेर बिहार